नाक का सवाल या कुछ और, यूपी में क्यों घट रहे नामांकन वापस लेने वाले 'नेताजी'
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand2250701

नाक का सवाल या कुछ और, यूपी में क्यों घट रहे नामांकन वापस लेने वाले 'नेताजी'

Lok sabha chunav 2024: लोकसभा चुनाव के दंगल में प्रत्याशियों का नामांकन के बाद पर्चा वापस लेना नाक का सवाल बनता दिखाई दे रहा है. चुनाव दर चुनाव पर्चा वापस लेने वाले उम्मीदवारों की संख्या में गिरावट होती नजर आ रही है. 

नाक का सवाल या कुछ और, यूपी में क्यों घट रहे नामांकन वापस लेने वाले 'नेताजी'

Lok sabha chunav 2024: लोकसभा चुनाव के दंगल में सियासी सूरमा दमखम दिखा रहे हैं, दिलचस्प बात यह है कि प्रत्याशियों का नामांकन के बाद पर्चा वापस लेना नाक का सवाल बनता दिखाई दे रहा है. इसलिए चुनाव दर चुनाव पर्चा वापस लेने वाले उम्मीदवारों की संख्या में गिरावट होती नजर आ रही है. नामांकन करना और चुनाव लड़ना अब आसान नहीं है. पहले पर्चा भरने वालों की संख्या अच्छी खासी रहती थी. इसमें डमी, बागी और निर्दलीयों की संख्या खूब होती थी लेकिन अब ये आंकड़ा कम होता नजर आ रहा है. 

यूपी में नामांकन के बाद बैठ जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या घटती जा रही है. पिछले 15 साल के आंकड़े देखें तो इसमें करीब 85 फीसदी की कमी आई है. आंकड़े देखें तो साल 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपी में 130 प्रत्याशियों ने नामांकन वापस ले लिए थे. 2014 में ऐसे प्रत्याशियों की संख्या घटकर 122 रह गई. 2019 में इसमें और गिरावट देखने को मिली और यह आंकड़ा महज 35 पर आकर सिमट गया. वहीं इस लोकसभा चुनाव में भी अब तक करीब 20 प्रत्याशी नाम वापस ले चुके हैं. 

वहीं ठीक से नामांकन  फॉर्म न भरने के मामले में भी उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों से बहुत आगे है. पछले चुनाव में यूपी से 766 दावेदारों के नामांकन खारिज हो गए थे, जो देश में सबसे ज्यादा थे. इसके अलावा नामांकन पत्र अधूरा और गलत भरने के मामले में यूपी के उम्मीदवार सबसे आगे हैं. बीते लोकसभा चुनाव में जहां इस वजह से 766 प्रत्याशियों के नामांकन पत्र खारिज हो गए थे. 2014 में ऐसे प्रत्याशियों की  संख्या 466 थी. 2009 में ये संख्या 401 थी. वर्तमान लोकसभा चुनाव में अभी तक 537 नामांकन पत्र खारिज हो चुके हैं. 

क्या हो सकती है वजह 
सियासी जानकारों की मानें तो नामांकन के बाद बैठने वाले उम्मीदवारों की संख्या घटने के पीछे कई वजह शामिल हैं. डमी उम्मीदवार का दांव भी अब ज्यादा असर नहीं डालता है. निर्दलीय प्रत्याशियों को भी जनता की पसंद कम बनते हैं. इसके साथ ही चुनाव लड़ने और फिर नाम वापस लेने पर सियासी साख के लिए अच्छा संदेश नहीं देता है. इसके अलावा  जमानत राशि के तौर पर जमा होने वाली 25 हजार रुपये की रकम भी जब्त हो जाती है. 

Lok Sabha Election 2024: पूर्वांचल में क्या क्लीन स्वीप करेगी बीजेपी, बसपा के मुस्लिम प्रत्याशियों ने कैसे बिगाड़ा सपा का खेल

UP Politics: बीजेपी को कितनी सीटें मिलेंगी, केजरीवाल ने लखनऊ आकर क्यों किया ये दावा

 

 

Trending news