जब मशहूर तवायफ चुनावी मैदान में उतरी, सामने लड़ रहे हकीम बोले- मियां, कहां फंसा दिया!

 Tawaif Dilruba Jaan: लखनऊ में 1920 के नगर पालिका चुनाव में तवायफ दिलरुबा जान चुनावी मैदान में उतर आई थीं. उनके खिलाफ एक हकीम ने पर्चा भरा. दोनों के बीच कांटे का मुकाबला हुआ.

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : May 7, 2024, 11:26 AM IST
  • तवायफ ने लड़ा 1920 का नगरपालिका चुनाव
  • शहर के हकीम शमसुद्दीन से हुआ मुकाबला
जब मशहूर तवायफ चुनावी मैदान में उतरी, सामने लड़ रहे हकीम बोले- मियां, कहां फंसा दिया!

नई दिल्ली: Tawaif Dilruba Jaan: देश में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं. इसी बीच डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की 'हीरामंडी' सीरीज आई है. इसके बाद से ही तवायफों के जीवन पर चर्चा हो रही है, लोग इनके बारे जानना चाह रहे हैं. आज हम आपको ऐसी तवायफ की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने चुनाव लड़ा तो शहर का कोई व्यक्ति उसकी खिलाफत करने नहीं उतर पाया, क्योंकि बड़े घरानों के लोग उसके कद्रदान थे.

हैरान थे शहर के लोग
दरअसल, आजादी से पहले साल 1920 में लखनऊ में नगर पालिका का चुनाव होना था. तभी शहर की मशहूर तवायफ दिलरुबा जान ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. खास बात ये है कि शहर के करीब-करीब लोग दिलरुबा के दीवाने थे, इसलिए कोई उसके सामने चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ. शहर के कई लोग हैरान थे कि कोठे पर महफिल जमाने वाली एक तवायफ चुनावी मैदान में कैसे उतर सकती है. 

'मियां, हमें कहां फंसा दिया'
बड़ी मशक्कत के बाद कुछ लोगों ने अकबरी गेट के पास रहने वाले हकीम शमसुद्दीन को दिलरुबा जान के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया. लेकिन हकीम साहब को उनके चंद रिश्तेदारों और मरीजों के अलावा कोई नहीं जानता था, दूसरी ओर, दिलरुबा जान के चर्चे तो आसपास के शहरों में भी थे. हकीम साहब दिलरुबा जान की फेम देखकर इतने हताश हो गए कि उन्होंने एक बार अपने दोस्त से कहा, 'मियां, ये हमें कहां फंसा दिया?'

शेर-ओ-शायरी से हुआ चुनाव प्रचार
हकीम शमसुद्दीन की हताशा देखकर दोस्तों को एक तरकीब सूझी. उन्होंने एक ऐसा नारा बनाया, जो लखनऊ की गलियों में गूंजने लगा. दीवारों पर लिखा जाने लगा. नारा था, 'है हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, दिल दीजिए दिलरुबा को, वोट शमसुद्दीन को’. जब दिलरुबा जान तक इसकी खबर पहुंची तो उसने भी इसी अंदाज में जवाब देने की ठानी. उसने नारा दिया, 'है हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, वोट देना दिलरुबा को, नब्ज शमसुद्दीन को.' ये मीठी नोंक-झोंक वाला चुनाव उस समय खूब चर्चा बटोर रहा था. 

'आशिक कम और मरीज ज्यादा हैं'
चुनाव के दिन लोगों ने वोटिंग की. दोनों के बीच कांटे का मुकाबला नजर आ रहा था. रिजल्ट आया तो पूरा शहर चौंक गया. हकीम शमसुद्दीन बेहद मामूली अंतर से चुनाव जीत गए. जब दिलरुबा जान को पता चला कि वे चुनाव हार गईं, तो उन्होंने निराश होते हुए बस इतना कहा, 'चौक में आशिक कम और मरीज ज्यादा हैं.'

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