"कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने"; परवीन शाकिर के शेर

कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने... बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं... देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन

अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है... जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की

बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की... और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए

हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ... दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं

मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी... वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा

वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी... इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे

यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर... जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना

कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी... दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी

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