PAK ने कभी फिलिस्तीनियों के खिलाफ जॉर्डन का साथ देकर मचाई थी तबाही, अब खुद को बताया कट्टर समर्थक
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PAK ने कभी फिलिस्तीनियों के खिलाफ जॉर्डन का साथ देकर मचाई थी तबाही, अब खुद को बताया कट्टर समर्थक

Israel-Hamas War: पाकिस्तान के अंतरिम प्रधान मंत्रीअनवार उल हक कक्कड़ ने चल रही हिंसा को 'उत्पीड़कों और उत्पीड़ितों के बीच युद्ध' बताया. पाकिस्तान इज़रायल का कटु आलोचक रहा है, 

PAK ने कभी फिलिस्तीनियों के खिलाफ जॉर्डन का साथ देकर मचाई थी तबाही,  अब खुद को बताया कट्टर समर्थक

World News In Hindi: पाकिस्तान खुद को फिलिस्तीनियों का कट्टर समर्थक बताता आया है. पाकिस्तान ने हमास आतंकवादियों पर इजरायल के जवाबी हवाई हमलों को फिलिस्तीन के लोगों के खिलाफ नरसंहार करने के बराबर बताया है.  कार्यवाहक विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इज़राइल आक्रामकता कर रहा है. उन्होंने कहा, '(इजरायल) ने नागरिक आबादी पर हवाई हमले किए जिसमें कई फिलिस्तीनी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई.'

पाकिस्तान के अंतरिम प्रधान मंत्रीअनवार उल हक कक्कड़ ने चल रही हिंसा को 'उत्पीड़कों और उत्पीड़ितों के बीच युद्ध' बताया. पाकिस्तान इज़रायल का कटु आलोचक रहा है, वह इस देश को मान्यता नहीं देता है और तेल अवीव के साथ उसके कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं.

पाकिस्तान - फिलिस्तीन संबंंधों का काला अध्याय
फिलिस्तीन के समर्थन में बड़ी-बड़ी बाते करने वाले पाकिस्तान के इतिहास का एक ऐसा अध्याय भी है जिसे वह भूलना चाहेगा. दरअसल कभी पाकिस्तान ने फिलिस्तीनियों के खिलाफ जंग में हिस्सा लिया था जिसमें हजारों फिलिस्तीनी मारे गए थे.  यह किस्सा दरअसल 1970 के ब्लैक सितंबर युद्ध से जुड़ा है.

1967 के 6 दिवसीय युद्ध में, लगभग 3,00,000 फिलिस्तीनी शरणार्थी जॉर्डन नदी के पार अम्मान और अन्य शहरों के आसपास नए शिविरों में चले आए. धीरे-धीरे फिलिस्तीनी फिदायीन जॉर्डन के भीतर मजबूत होने लगे.

1968 में जॉर्डन के खिलाफ एक इजरायली कैंपेन शुरू हुआ, जो करामेह की पूर्ण पैमाने की लड़ाई में बदल गया. कारमेह की लड़ाई में दोनों पक्षों ने अपनी जीत का दावा किया है. हालांकि इजरायल पीएलओ लीडर यासिर आराफात को पकड़ने में नाकाम रहा.

जॉर्डन में बढ़ने लगी पीएलओ की लोकप्रियता
इस लड़ाई के बाद जॉर्डन में पीएलओ को लोकप्रियता तेजी से बढ़ी. 1970 की शुरुआत तक, पीएलओ के भीतर कुछ समूहों ने जॉर्डन की हाशमाइट राजशाही को उखाड़ फेंकने का आह्वान करना शुरू कर दिया था. पॉपुलर फ्रंट फॉर लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन (पीएफएलपी) जैसे आतंकवादी समूहों ने भी इजरायल के खिलाफ जॉर्डन की जमीन से हमले शुरू किए, जिसके जवाब में इजरायली ने भी सैन्य कार्रवाई की.

इज़राइल के खिलाफ देश की रक्षा के लिए जॉर्डन में इराकी सेना की एक महत्वपूर्ण टुकड़ी, लगभग 20,000 सैनिकों और 200 टैंकों की उपस्थिति ने स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया. इसकी वजह यह थी कि इराक और सीरिया दोनों जॉर्डन में सक्रिय अलग-अलग फिलिस्तीनी आतंकवादी समूहों का समर्थन करते थे.

इस बीच 6 सितंबर 1970 के डावसन फील्ड अपहरण घटना हुई, जब पीएफएलपी ने तीन नागरिक यात्री उड़ानों को हाइजैक कर लिया. हाइजैक किए गए विमानों को जॉर्डन के शहर ज़ारका में उतरने के लिए मजबूर किया और कई विदेशी नागरिकों को बंधक बना लिया गया.

हुसैन ने इस घटना को आखिरी चेतावनी के रूप में लिया और जॉर्डन सेना को कार्रवाई करने का आदेश दिया. 17 सितंबर 1970 को, जॉर्डन की सेना ने अम्मान और इरबिड सहित पीएलओ की महत्वपूर्ण उपस्थिति वाले सभी शहरों को घेर लिय. जॉर्डन सेना ने फिलिस्तीनी शरणार्थी शिविरों पर गोलाबारी शुरू कर दी, जहां फिदायीन एक्टिव थे. इस युद्ध को इतिहास में ब्लैक सिंतबर युद्ध के रूप में याद किया जाता है.

इस युद्ध में सीरिया ने हमास का साथ दिया. दिलचस्प बात यह है कि जॉर्डन को मदद इजरायल से मिली जिसकी वायुसेना ने सीरियाई सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई की.

ब्लैक सितंबर युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका
जॉर्डन की सेना को पाकिस्तान के विशेषज्ञों की एक टीम से बहुत फायदा पहुंचा जिसने सेना को पुनर्गठित करने, उसकी ट्रेनिंग में सुधार करने और उसे युद्ध के लिए तैयार करने में मदद की. इस टीम के नेता का नाम था ब्रिगेडियर मोहम्मद जिया-उ-हक. जिया ने बाद में पाकिस्तान में नागरिक शासन को उखाड़ फेंका और 1978 से 1988 तक देश पर शासन किया.

जॉर्डन में पाकिस्तानी प्रशिक्षण मिशन के प्रमुख, ब्रिगेडियर मुहम्मद जिया-उल-हक (बाद में सेनाध्यक्ष और पाकिस्तान के राष्ट्रपति) ब्लैक सितंबर से पहले तीन साल के लिए अम्मान में तैनात थे.

 सीआईए अधिकारी जैक ओ'कोनेल के अनुसार, ज़िया को सीरिया की सैन्य क्षमताओं का आकलन करने के लिए हुसैन द्वारा उत्तर भेजा गया था. पाकिस्तानी कमांडर ने हुसैन को वापस रिपोर्ट करते हुए क्षेत्र में आरजेएएफ स्क्वाड्रन की तैनाती की सिफारिश की. ओ'कोनेल ने यह भी कहा कि जिया ने लड़ाई के दौरान व्यक्तिगत रूप से जॉर्डन के सैनिकों का नेतृत्व किया.

यह लड़ाई मुख्य रूप से 16 और 27 सितंबर 1970 के बीच लड़ी गई, हालांकि संघर्ष के कुछ पहलू 17 जुलाई 1971 तक जारी रहे. युद्ध में पीएलओ के करीब 3400 लोगों की मौत हुई जबकि सीरिया के 600 जवान मारे गए. वहीं जॉर्डन के 537 सैनिक युद्ध में मारे गए. ब्लैक सितंबर युद्ध ने जॉर्डन में फिलिस्तीनी आतंकवादियों के असर को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया.

जिया की युद्ध में भूमिका पर बहस
हालांकि ब्लैक सितंबर युद्ध में ज़िया-उल-हक की सटीक भूमिका बहस का विषय है, कई लोगों ने उन्हें फिलिस्तीनियों का 'कसाई' कहा है. हालांकि कुछ रिपोर्टों में यह दावा भी किया गया है कि पाकिस्तानी सेना का काम केवल जॉर्डन के रक्षा बलों को प्रशिक्षित करना था और पाकिस्तानी सेना युद्ध में शामिल नहीं थी.

अन्य रिपोर्टों में कहा गया है कि जियाउल हक ने नरसंहार में हिस्सा लेकर जॉर्डन की सेना में अपनी नियुक्ति की शर्तों का उल्लंघन किया है. उनके सैनिकों पर लड़ाई में शामिल होने और फिलिस्तीनियों की हत्या करने का आरोप लगाया गया.

 

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